गुरुवार, 13 नवंबर 2008

करीब सात आठ महिने पहिले एक नवयुवति ने अपना मुंह ढके हुए मेरे क्लिनिक मैंप्रवेश किया ऱऔर आते ही रोने लगी.साथ मैं उसकी चाची ने उसे ढाढस बंधाया और मुंहउघाङने को कहा......पूरा चेहरा मवाद और रक्त से भरा हुआ था और सूजा हुआ था.उसकीआंखे ठीक से नहीं खुल पा रही थी...बात करने पर पता चला कि ये समस्या पिछले दो सालसे है पर छ महिने पहिले ही एकाएक बढ कर इस रूप मैं हो गईहै....अब उसका विवाह होने वाला था कुछ दिनों मैं इसलिए वो कुछ ज्यादा ही परेशान हो गई......उसके साथ आई महिला जो कि उसकी चाची थी ने बता या कि वह कुछ दिन पहले एक बार आत्महत्या का विफल प्रयास भीकर चुकी है....कुल मिलाकर स्थिति विकट थी...खैरमैने उसे ढाढस बंधाया और हर संभव सहायता का भरोसा दिलाया. और विश्वास दिलाया कि वह काफी कुछ ठीक होजायेगी...विश्वास होने पर उसका रोना बंद हुआ.......और आगे से ऐसा कुछ नहीं करने की हिदायत दी.......

मैने अपना निदान तब तक सोच लिया था....यह एक्नि वल्गैरिस (मुंहासे) ग्रैड 5 थाऔर तब तक मैं उसे दिया जाने वाला उपचार की रूपरेखा भी मस्तिष्क मैं बना चुकाथा......तब मैंने आइसोट्रिटिनोइन नामक एकऔषधी प्रारंभ करने के वारे मैं विचार किया...पर कुछ कठिनाइयां थी एक तो यह औषधीमंहगी बहुत थी महिने की करीब 1300 -1400 की दवाई और कम से कम चार पांच महिने तकचलने वाली थी और दूसरे दवाई बंद करने के बाद करीब डेढ साल तक वह गर्भ धारण नहीं करसकती थी ...क्यों कि होने वाले बच्चे मैं गंभीरपरिणाम हो सकते हैं.....

जल्द ही दोनों समस्याओं का समाधान हो गया क्यों कि गर्भ धारण करने की बात वो मान गइ और दवाईयां मैंने उसकी आर्थिक स्थिति देखकर उससे वादा किया कि मैं किसी भी तरह जितना हो सकेगा अपने पास् से दूंगा कम से कम एक तिहाई .........

खैर उपचार प्रारंभ हुआ वो हर पंद्रह दिन मैं आती थी दवाई लेने ....प्रारंभ मै औषधियों का असर थोङा कम होता हैं ...इसलिए वो बार बार हिम्मत हार जाती पर मैने उसे मानसिक और दवाइयों से दोनों तरह से पूरा सहयोग दिया और उसकी हिम्मत बनाए रखी .पर एक बात मुझे खटकती ती वो ये कि वो मुफ्त की दवाइयां तो मेरे से लेती थी पर बाकि दवाइयां मेरे क्लिनिक पर स्थित मैडीकल स्टोर की जगह अपने किसी रिश्तेदार की दुकान से लेती थी........वैसे कभी भी मैं इस चीज का ध्यान कभी नहीं रखता कि कौन यहां से दवाइ लेता है कौन नहीं ....पर चूंकि मैं इस रोगी की इतनी सहायता कर रहा था इस लिए शायद मुझे ये अटपटा लगा......

धीरे धीरे वो ठीक होने लगी ...मैं स्वयं परिणाम से संतुष्ट था और वो भी प्रसन्न थी....करीब पांच महिने बाद एक दिन बङे ही प्रसन्न मुख से उसने मेरे क्लिनिक मैं प्रवेश किया और बोली ..सर दो दिन बाद मेरी शादी है .....आज उसका चेहरा दमक रहा था ,चेहरे के निशान काफी कुछ साफ हो चले थे और बहुत सुंदर दिख रही थी आज...........मैं स्वयं विश्वास नहीं कर पा रहा था कि यह वही लङकी है जो उस दिन पहचान मैं नहीं आ रही थी और जिसका रो रोकर बुरा हाल था.मैंने उसे अंतिम पंद्रह दिन की दवाइयां लिखकर महिने दो महिने मैं वापिस दिखाने को कहकर उसे विदा किया...जाते जाते उसने पलटकर धन्यवाद दिया और दरवाजे के बाहर निकल गई.

ठीक दस मिनिट बाद हरीराम जो कि मेरी फार्मेसी संभालता है ,घबराया हुआ अंदर आया ...सर जो लङकी आईसोट्रिटिनइन लेती है वो दवाई दिखाने आई थी क्या...मैने कहा नहीं वो को वैसे भी अपने यहां से दवाई नहीं लेती है....क्या हुआ......दिखाने के बाद दवाई लेकर तो नहीं आई.....

साब उसने कभी यहां से दवाई नहीं खरीदी.....आज पंद्रह दिन की जगह उसने दो महिने की दवाई ली और आपको दिखाने का नाम लेकर अंदर आई थी....पर वापिस नहीं दिखी........

जिस लङकी को पिछले छै महीने से कि उसके अंधकार मय जीवन मैं एक तरह उजाला हो इसलिए पूरा मन लगाकर मेरे से जितनी संभव है उतनी सहायता की .....वो पूरे ढाई हजार की दवाईयां लेकर गायव हो चुकी थी

आगजनी और तोङ फोङ होती

मीडिया और हमारे बुद्धिजीवी जब तक प्रत्येक घटना साम्प्रदायिकता के चश्मे से देखकर उसाका विश्लेषण करेंगे तब तक कैसे संभव है कि जो लोग वाकइ मैं सामप्रदायिकता फैलाना चाहते हैं इस देश मैं वे सही रास्ते पर लाये जा सकें...किसी घटना को मीडिया मैं तवज्जों कितनी और किस प्रकार की मिलने वाली हैं यह इस बात पर निर्भर करता हैं कि वह किसने कारित की हैं...हिंदू ने या मुसलमान ने यहां करने वाला हिंदु हुआ तो ...तब वह आदमखोर हिंदु ...और यदि मुसलामान या ईसाई हुआ तो वह किसी धर्म या संप्रदाय विशेष के लोगों ने ....ऐसा बोलकर प्रचारित की जाती है.बुद्धिजीवियों की शब्दावली भी यही होती हैं,जब तक ये होता रहेगा तब तक ये कैसे संभव है कि एक सामान्य व्यक्ति इन सब को तटस्थ मानें..
यदि हम वाकई ये चाहते हैं कि हमारे देश का धर्म निरपेक्षता बची रहै और सभी संप्रदाय के लोग यहां मिलजुल कर खुशी खुशी रहें तो यह सब बंद होना ही चाहियें,क्यों हम किसी आतंकवादी या उग्रवादी घटना के बाद उसे संप्रदाय के आधार पर उसका विचार संप्रदाय के आधार पर करें.क्या हिंदु को दर्द कम होता है या मुसलमान के मरने से उसके घर वाले कम दुःखी होते हैं.
विशेष बात ये है कि ये सब वे लोग कर रहें हैं जो अपने आप को धर्मनिरपेक्षता का झंडा वरदार समझते हैं,हाले के दिनों मैं ऐसे कई सारे उदाहरण सामने आये हैं जिनसे ये बात स्पष्ट होती है...

दो एक साल पहले मूसा खेङा नाम की ऐक जगह है अलवर (राजस्थान) के पास वहां पांछ छ सिख भाईयों की हत्या कर दी गई थी..हत्या भी एकदम तालिबानी तरीके से की गई थी उनमें से प्रत्येक के टुकङे टुकङे कर दियें गये और एक को पैङ पर लटकाकर उसके पहले हाथ पैर काटे गये फिर आंखे निकाल ली गई...इतना ही नहीं बल्कि घर की महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया कुल मिलाकर एक हंसता खेलता परिवार बङे ही क्रूर तरीके से मार दिया गया अब उस घर मैं सिर्फ विधवा महिलायें और बच्चे ही बाकी बचे हैं .
इस घटना का पता राजस्थान के ही दूसरे हिस्सों मैं तब लगता हैं जब वहां कि जनता बंद का ऐलान करती हैं और वहां एक दो जगह आगजनी और तोङ फोङ होती हैं ... तो अखबारों ने छापा कि हिंदु अतिवादी संगठनों की दादा गिरी....बाकी इस घटना से न तो किसी मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवी का पैट का पानी भी नहीं हिला.किसी अखबार ने संपादकीय तो छोङो ...उन मृतकों के लिए दो लाइने भी खराब नहीं की.....
क्या उनके खून का रंग ग्राहम स्टैंस के खून से सफेद था...क्या मानवता यही कहती हैं...उन महिलाओं की इज्जत उङीसा की नन से ज्यादा सस्ती थी....पर ग्राहम स्टैंस के हत्यारे को फांसी की सजा सुनाई जाती हैं और उन्हें पद्म श्री दी जाती है स्टैंस की पत्नी सरकारी मैहमान बनकर दिल्ली आती हैं..दूसरी ओर उन भाइयों के परिवार वाले आज भी न्याय के लिए दर दर भटक रहे हैं.
क्या बुद्धीजीवी का अर्थ ये तो नहीं कि बुद्धि बेच बाचकर आजीवीका चलाने वाले,.....क्या मानवाधिकार भी हिंदु या मुसलमान के लिए या ईसाई के अलग होता है ...विचार करें...क्या करेंगे ऐसी धर्म निरपेक्षता का...
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गुरुवार, 2 अक्टूबर 2008

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Kishore Kumar - Rafta Rafta Dekho (Kahani Kismat Ki 1973)

बुधवार, 1 अक्टूबर 2008

सोरायसिस(psoriasis)

विश्व की कुल जनसंख्या का करीब 1 प्रतिशत लोग सोरायसिस से पीङित हैं,इस लिहाज से देखा जाये तो हमारे देश की कुल जनसंख्या का लगभग 1 प्रतिशत याने 1 करोङ लोगों को सोरायसिस है.


सोरायसिस के बारे में जानना ही इसका आधा उपचार है यदि आप इस रोग के बारे में जानते हैं तो आधा उपचार तो आप स्वयं ही कर सकते ,


कि सामान्य जानकारी के लिए इसकी गहराई में जाना आवश्यक नहीं है यहां हम केवल उन चीजों के बारे में बात करते हैंजो एक सामान्य रोगी के लिए जानना आवश्यक है्.


लक्षण-most characteristically lesions are chronic sharply demarcated dull red scaly plaques particularly on the extensor prominence and scalp.


2906702964_301d9ea35b 2905865403_8c22f65734अर्थात रक्तिम ,छिलकेदार ,निशान जो के आस पास की त्वचा पर अलग से दिखाइ देते हैं,ये सिर अलावाextensor surface जैसे कोहनी ,और घुटने की तरफ पूरे पाव में और कमर पर अधिकतर मिलते हैं.इनका आकार 2-4 मिमि से लेकर कुछ सेमी तक हो सकता है ,सिर में ये रूसी के गंभीरतम रूप की तरह दिखाइ देते हैं,


सोरायसिस यदि एक बार हो गया तो बह फिर जीवन भर चल सकता है .विज्ञान के इतने विस्तार के बाद भी अभी तक कोइ दवाई ऐसी नहीं बनी जो इसे पूर्णतया ठीक कर सके.पूर्णतया लगभग 10-30 प्रतिशत रोगी कुछ समय बाद अपने आप ठीक हो जाते हैं.पर इसमें उपचार की भूमिका नगण्य है ,अर्थात अपने आप ठीक होते हैं क्यों ठीक होते है ,अभी तक कारण अज्ञात है.


गंभीरता के अनुसार यह शरीर पर कई बार सिर्फ कुछेक चकतों के रूप में दिखाई देता है वे भी कुछ समय रहकर अपने आप ठीक हो जाते है ,पर बहुत बार यह शरीर के काफी बङे हिस्से को ढांप लेता है, सोरायसिस की गंभीरता मौसमी परिवर्तनों सेभी प्रभावित होती है ,जैसे सर्दियों मै सोरायसिस बढ जाता है


प्रकारक्रोनिक प्लाक सोरायसिस-यह सोरायसिस का मुख्य प्रकार है और उपर लिखित लक्षण क्रोनिक प्लाक सोरायसिस के ही हैं,


इसके अलावा इसके अन्य कई प्रकार हैं जो कि कम ही मरीजों मैं पाये जाते हैं जैसे --


guttate psoriasis-4-5 मिमि के गोल निशान बनते है ,अक्सर बच्चों मैं गले के संक्रमण के बाद होते हैं और पूरे शरीर पर गोल गोल निशान बनते है जो कि अधिकतर ठीक हो जाते हैं पर कई बार ये क्रोनिक प्लाक सोरायसिस मैं परिवर्तित हो सकते हैं


,erythrodermic psorisis-जब सोरायसिस शरीर के 80 प्रतिशत हिस्से तक फैल जाता है तो इसे कहते हैं,यह एक प्रकार का गंभीरतम प्रकार है जिसका तुरंत किसी विशेषज्ञ से उपचार की आवश्यता होती है अन्यथा जीवन के लिए खतरा हो सकता है.


pustular psoriasis-यह भी गंभीर प्रकार का सोरायसिस है जिसमें पूरे शरीर पर छाले बन जाते हैं जिनमें pus भरी होती है.


कई बार यह मात्र हथेली और पगतली पर ही होता है (palmo plantar psoriasis) और जब यह सिर्फ सर मैं होता है (scalp psoriasis ).


कैसे होता है सोरायसिस-हमारी त्वचा जिस प्रकार से हमारे बाल बढते है ,जिस तरह नाखून बढते हैं वैसे ही निरंतर बनती रहती है और उतरती रहती है। और हमारे शरीर की संपूर्ण त्वचा एक महिने में पूरी बदल जाती है.पर जहां सोरायसिस होता है वहां यह त्वचा केवल चार दिन में बदल जाती है.2906711824_497fac9a0dक्यों कि यह त्वचा पूरी तरह सेmature नहीं हो पाती है इसलिए इसकी पकङ कमजार होती है ओर यह भुरभुरी सी त्वचा चांदी के छिलकों जैसी दिखती है और यदि ऊपर से इसे ग्लाम स्लाइड से रगङा जाये तो धीरे धीरे परत दर परत उतरती चली जाती है और फिर हल्की हल्की रक्त की वूंदे दिखाइ देने लगती है यह एक तरह का टैस्ट है जिसे auspitz sign कहते हैं जो बङा साधारण सा तरीका है जिससे सोरायसिस का निदान किया जा सकता है ,


उपचार-साधारणतया सोरायसिस सामान्य मॉश्चराइजर्स या इमॉलिएंट्स जैसे वैसलीन ,ग्लिसरीन.या अन्य क्रीम्स से भी नियंत्रत हो सकता है , सिर पर जब ये होता है तो विशेष प्रकार के टार शैंपू काम मैं लिया जाता हैं,सिर के लिए सैलिसाइलिक एसिड लोशन और शरीर पर हो तो सैलिसाइलिक एसिड क्रीम विशेष उपयोगी होती है.इसके अलावा कोलटार(क्रीम,लोशन,शैम्पू) diatharnol(chryosorabin bark extract ) आदि दवाइयां विशेष उपयोगी होती हैं


फोटोथैरेपी-जिसमें सूर्य की किरणों मैं पायी जाने वाली UV-A और U V-B किरणों से से उपचार किया जाता है.PUVA थैरेपी जिसमें psoralenes +UVA थैरेपी सामान्य रूप से काम लिया जाने वाला उपचार है .


जाता हैं.इसके अलावा कैल्सिट्रायोल और कैल्सिपौट्रियोल नामक औषधियों का भी बहुत अच्छा प्रभाव होता है पर ये इतनी महंगी हैं कि सामान्य आदमी की पहुंच से बाहर होती हैं


इसके अलावा जब बीमारी ज्यादा गंभीर हो तब मीथोट्रीक्सैट और साईक्लोस्पोरिन नामक दवाईयां भी काम ली जाती हैं पर ये सब किसी विशेषज्ञ चिकित्सक की देखरेख मैं ही लेनी चाहिये,


उपसंहार-कुल मिलाकर सोराईसिस एक ऐसी बीमारी है जो एक बार यदि हो गई तो जीवन भर चलने वाली है यानि once a psoriasis patient is always a psoriasis patient. पर इतना होने के बाद भी इसकी कुछ खूबियां है भी हैं-


यह छूत की बीमारी नहीं है.


परिवार मैं अक्सर अकेले व्यक्ति को होती है बच्चों को नहीं होती है और यदि होती भी है तो सामान्य जनसंख्या के अनुपात मैं मात्र कुछ ही ज्यादा प्रतिशत मैं ऐसा होता है तो मान सकते हैं कि आनुवांशिक रूप से कभी कभार ही होती है.


अक्सर सोरायसिस के रोगी को खुजली बीमारी की तुलना मैं बहुत कम चलती है ,इससे शरीर पर निशान होने के बाद भी मरीज आराम से जी सकता है


यदि व्यक्ति किसी विशेषज्ञ चिकित्सक की देख रेख मैं यान महिने दो महिने मैं एक बार किसी विशेषज्ञ से मिलता रहे तो ज्यादा परेशान नहीं होता है.


विशेषज्ञ चिकित्सक के अलावा उपचार लेना भारी पङ सकता है,क्यों कि अक्सर लोग लंबी बीमारी होने की वजह से नीम हकीमों के,और गारंटी से ठीक कर देने वालों के चक्कर मैं पङ जाते हैं, और सामान्य रूप से ये देखा गया है कि erythrodermic psorisis, या pustular psoriasis गंभीरतम प्रकार है सोरायसिस के वे इस देशी या गारंटी वाले इलाज की वजह से ही होते है क्यों कि इस प्रकार के उपचार मैं ज्यादा तर स्टीरॉइड्स का उपयोग किया जा सकता है जिनसे अधिकतर चमङी की बीमारियों मैं थोङा बहुत फायदा जरूर होता है पर सोरायसिस मैं ये विष का काम करती है,और थोङी सी बीमारी भी पूरे शरीर मैं फैल जाती है.


परहेज नाम पर मात्र मदिरा और धूम्रपान का परहेज है क्यों कि ये दोनों ही सीधे सीधे इस व्याधि को बढाते है.


कुल मिलाकर यदि हमें इस व्याधि के बारे मैं यदि हमें सामान्य जानकारी हो तो रोगी बङे आराम से सामान्य जीवन जी सकता है और जीते हैं


सोरायसिस(psoriasis)

विश्व की कुल जनसंख्या का करीब 1 प्रतिशत लोग सोरायसिस से पीङित हैं,इस लिहाज से देखा जाये तो हमारे देश की कुल जनसंख्या का लगभग 1 प्रतिशत याने 1 करोङ लोगों को सोरायसिस है.


सोरायसिस के बारे में जानना ही इसका आधा उपचार है यदि आप इस रोग के बारे में जानते हैं तो आधा उपचार तो आप स्वयं ही कर सकते ,


कि सामान्य जानकारी के लिए इसकी गहराई में जाना आवश्यक नहीं है यहां हम केवल उन चीजों के बारे में बात करते हैंजो एक सामान्य रोगी के लिए जानना आवश्यक है्.


लक्षण-most characteristically lesions are chronic sharply demarcated dull red scaly plaques particularly on the extensor prominence and scalp.


2906702964_301d9ea35b 2905865403_8c22f65734अर्थात रक्तिम ,छिलकेदार ,निशान जो के आस पास की त्वचा पर अलग से दिखाइ देते हैं,ये सिर अलावाextensor surface जैसे कोहनी ,और घुटने की तरफ पूरे पाव में और कमर पर अधिकतर मिलते हैं.इनका आकार 2-4 मिमि से लेकर कुछ सेमी तक हो सकता है ,सिर में ये रूसी के गंभीरतम रूप की तरह दिखाइ देते हैं,


सोरायसिस यदि एक बार हो गया तो बह फिर जीवन भर चल सकता है .विज्ञान के इतने विस्तार के बाद भी अभी तक कोइ दवाई ऐसी नहीं बनी जो इसे पूर्णतया ठीक कर सके.पूर्णतया लगभग 10-30 प्रतिशत रोगी कुछ समय बाद अपने आप ठीक हो जाते हैं.पर इसमें उपचार की भूमिका नगण्य है ,अर्थात अपने आप ठीक होते हैं क्यों ठीक होते है ,अभी तक कारण अज्ञात है.


गंभीरता के अनुसार यह शरीर पर कई बार सिर्फ कुछेक चकतों के रूप में दिखाई देता है वे भी कुछ समय रहकर अपने आप ठीक हो जाते है ,पर बहुत बार यह शरीर के काफी बङे हिस्से को ढांप लेता है, सोरायसिस की गंभीरता मौसमी परिवर्तनों सेभी प्रभावित होती है ,जैसे सर्दियों मै सोरायसिस बढ जाता है


प्रकारक्रोनिक प्लाक सोरायसिस-यह सोरायसिस का मुख्य प्रकार है और उपर लिखित लक्षण क्रोनिक प्लाक सोरायसिस के ही हैं,


इसके अलावा इसके अन्य कई प्रकार हैं जो कि कम ही मरीजों मैं पाये जाते हैं जैसे --


guttate psoriasis-4-5 मिमि के गोल निशान बनते है ,अक्सर बच्चों मैं गले के संक्रमण के बाद होते हैं और पूरे शरीर पर गोल गोल निशान बनते है जो कि अधिकतर ठीक हो जाते हैं पर कई बार ये क्रोनिक प्लाक सोरायसिस मैं परिवर्तित हो सकते हैं


,erythrodermic psorisis-जब सोरायसिस शरीर के 80 प्रतिशत हिस्से तक फैल जाता है तो इसे कहते हैं,यह एक प्रकार का गंभीरतम प्रकार है जिसका तुरंत किसी विशेषज्ञ से उपचार की आवश्यता होती है अन्यथा जीवन के लिए खतरा हो सकता है.


pustular psoriasis-यह भी गंभीर प्रकार का सोरायसिस है जिसमें पूरे शरीर पर छाले बन जाते हैं जिनमें pus भरी होती है.


कई बार यह मात्र हथेली और पगतली पर ही होता है (palmo plantar psoriasis) और जब यह सिर्फ सर मैं होता है (scalp psoriasis ).


कैसे होता है सोरायसिस-हमारी त्वचा जिस प्रकार से हमारे बाल बढते है ,जिस तरह नाखून बढते हैं वैसे ही निरंतर बनती रहती है और उतरती रहती है। और हमारे शरीर की संपूर्ण त्वचा एक महिने में पूरी बदल जाती है.पर जहां सोरायसिस होता है वहां यह त्वचा केवल चार दिन में बदल जाती है.2906711824_497fac9a0dक्यों कि यह त्वचा पूरी तरह सेmature नहीं हो पाती है इसलिए इसकी पकङ कमजार होती है ओर यह भुरभुरी सी त्वचा चांदी के छिलकों जैसी दिखती है और यदि ऊपर से इसे ग्लाम स्लाइड से रगङा जाये तो धीरे धीरे परत दर परत उतरती चली जाती है और फिर हल्की हल्की रक्त की वूंदे दिखाइ देने लगती है यह एक तरह का टैस्ट है जिसे auspitz sign कहते हैं जो बङा साधारण सा तरीका है जिससे सोरायसिस का निदान किया जा सकता है ,


उपचार-साधारणतया सोरायसिस सामान्य मॉश्चराइजर्स या इमॉलिएंट्स जैसे वैसलीन ,ग्लिसरीन.या अन्य क्रीम्स से भी नियंत्रत हो सकता है , सिर पर जब ये होता है तो विशेष प्रकार के टार शैंपू काम मैं लिया जाता हैं,सिर के लिए सैलिसाइलिक एसिड लोशन और शरीर पर हो तो सैलिसाइलिक एसिड क्रीम विशेष उपयोगी होती है.इसके अलावा कोलटार(क्रीम,लोशन,शैम्पू) diatharnol(chryosorabin bark extract ) आदि दवाइयां विशेष उपयोगी होती हैं


फोटोथैरेपी-जिसमें सूर्य की किरणों मैं पायी जाने वाली UV- ओऔर UV- किरणों से उपचार किया जाता हैं


इसके अलावा जब बीमारी ज्यादा गंभीर हो तब मीथोट्रीक्सैट और साईक्लोस्पोरिन नामक दवाईयां भी काम ली जाती हैं पर ये सब किसी विशेषज्ञ चिकित्सक की देखरेख मैं ही लेनी चाहिये,


उपसंहार-कुल मिलाकर सोराईसिस एक ऐसी बीमारी है जो एक बार यदि हो गई तो जीवन भर चलने वाली है यानि once a psoriasis patient is always a psoriasis patient. पर इतना होने के बाद भी इसकी कुछ खूबियां है भी हैं-


यह छूत की बीमारी नहीं है




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कुल मिलाकर यदि हमें इस व्याधि के बारे मैं यदि हमें सामान्य जानकारी हो तो रोगी बङे आराम से सामान्य जीवन जी सकता है और जीते हैं


मंगलवार, 30 सितंबर 2008

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